Gita Acharan |Hindi

िज्ञान के अनुसार ‘हिग्स क्षेत्र’ एक अदृश्य ऊर्जा क्षेत्र है जो संपूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त है। इस क्षेत्र के साथ अंतःक्रिया से उप-परमाणविक कणों को वजन मिलता है। इन उप-परमाणविक कणों का संयोजन ही हमारे चारों ओर दिखने वाला पदार्थ हैं। जबकि उप-परमाणविक कणों को वजन पाने के लिए ‘हिग्स क्षेत्र’ की आवश्यकता होती है, ‘हिग्स क्षेत्र’ को अपने अस्तित्व के लिए किसी की आवश्यकता नहीं होती है।

उपरोक्त वैज्ञानिक प्रतिमान हमें समझने में मदद करेगा जब श्रीकृष्ण कहते हैं, "मेरे अव्यक्त रूप से सारा जगत व्याप्त है, सभी प्राणी मुझमें स्थित हैं किन्तु मैं उनमें स्थित नहीं हूँ (9.4)। वे सब प्राणी मुझमें स्थित नहीं हैं; किन्तु मेरे दिव्य योगशक्ति को देखो! मैं प्राणियों को जन्म देता हूँ और उनका धारण-पोषण करता हूँ किन्तु मैं उनमें स्थित नहीं हूँ" (9.5)।

अर्जुन को समझाने के लिए श्रीकृष्ण एक उदाहरण देते हुए कहते हैं, "जैसे सर्वत्र विचरने वाला वायु सदा आकाश में ही स्थित है, वैसे ही यह जान लो कि समस्त प्राणी मुझमें ही स्थित हैं" (9.6)। 

वायु या चक्रवात चाहे कितना भी शक्तिशाली या विनाशकारी क्यों न हो, फिर भी वह आकाश में ही रहेगा।श्रीकृष्ण कहते हैं, "कल्पों के अंत में सभी प्राणी मेरी प्रकृति में लीन हो जाते हैं व कल्पों के आरम्भ में उनको मैं फिर रचता हूँ (9.7)। अपनी प्रकृति को अङ्गीकार करके स्वभाव की वजह से परतंत्र हुए सम्पूर्ण प्राणियों को बार-बार उनके कर्मों के अनुसार रचता हूँ" (9.8)। यह प्रकृति की शक्ति के द्वारा अव्यक्त से व्यक्त की सामंजस्यपूर्ण रचना है।

श्रीकृष्ण कहते हैं, "उन कर्मों में आसक्तिरहित मुझ परमात्मा को वे कर्म नहीं बांधते" (9.9)। कुंजी अनासक्ति है। जबकि हम चीजों या उपलब्धियों से बंधे रहते हैं, परमात्मा अपनी शक्तिशाली रचनाओं से बंधे नहीं होते हैं। जब हम स्वयं को कर्ता मानते हैं, तो हम अपने कर्मों के द्वारा कर्मबंधन में बंध जाते हैं, जबकि परमात्मा एक साक्षी की तरह हैं जो बंधे हुए नहीं होते।


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