
जीने का तरीका चाहे जो कुछ भी हो, श्रीकृष्ण ने अनंत आनंद प्राप्त करने के लिए एकत्व में स्थापित होने की बात की (6.31)।
एकत्व प्राप्त करने में हमारे सामने तीन प्रमुख बाधाएँ हैं - पहला यह है कि इसे विभिन्न संस्कृतियों में अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है और जटिलता को बढ़ाने के लिए, इन संस्कृतियों द्वारा निर्धारित मार्ग एक दूसरे का विरोध करते प्रतीत होते हैं। दूसरा, हमारे मन को विभाजित करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है जो एकत्व प्राप्त करने से रोकता है।
तीसरा, हम जिस चीज को नहीं जानते उसे अस्वीकार करने की प्रवृत्ति रखते हैं और एकत्व हमारे लिए पूरी तरह से नया क्षेत्र है। इन कठिनाइयों से गुजरते हुए अर्जुन पूछता है कि मन को कैसे नियंत्रित किया जाए।
श्रीकृष्ण कहते हैं, ‘‘नि:संदेह, मन चंचल और कठिनता से वश में होने वाला है, परन्तु यह अभ्यास और वैराग्य से वश में होता है (6.35)। मेरा यह वचन मान लो कि जिसका मन वश में हुआ नहीं है, ऐसे पुरुष द्वारा योग दुष्प्राप्य है और वश में किए हुए मन वाले प्रयत्नशील पुरुष द्वारा साधन से उसका प्राप्त होना सहज है’’ (6.36)।
श्रीकृष्ण ने पहले अशांत मन को वश में करने के लिए दृढ़ संकल्प (6.26) के साथ नियमित अभ्यास की सलाह दी थी (6.23)।
वैराग्य राग या मोह का विपरीत ध्रुव है। दैनिक जीवन हमें राग और वैराग्य दोनों के क्षण देता है लेकिन हमारा मन केवल राग का अभ्यास करता है जो कि इच्छाओं का पीछा करना है। उदाहरण के लिए, हम एक रिश्ते में निराश हो सकते हैं और जब ऐसा होता है तो हम अपने साथी को दोष देते हुए एक नए रिश्ते की तलाश करते हैं यह समझे बिना कि एक रिश्ता (राग) में ही वैराग्य छुपा होता है।
वैराग्य का अभ्यास और कुछ नहीं बल्कि इस अनुभूति को दृढ़ करना है कि हम बाहर की दुनिया से या दूसरों से कभी आनंद प्राप्त नहीं कर सकते। वैराग्य के हमारे पिछले अनुभव हमें इस समझ को दृढ़ करने में और वर्तमान क्षण में जागरूक रहने में मदद करेंगे।
मृत्यु शाश्वत, शक्तिशाली और समभाव का स्वामी है। कई संस्कृतियाँ मन को नियंत्रित करके एकत्व प्राप्त करने के लिए मृत्यु का उपयोग करती हैं क्योंकि यह परम वैराग्य है।
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