
अर्जुन पूछते हैं (3.36), 'तो
- फिर यह मनुष्य स्वयं न चाहता हुआ भी किससे प्रेरित होकर पाप का आचरण करता है। "यह सबसे आम सवाल है जो जागरूकता पैदा होते ही उठता है ।
श्री कृष्ण कहते हैं (3.37 ), 'रजोगुण से उत्पन्न हुआ यह 'काम' ही क्रोध है, यह भोगों से कभी न - अघाने वाला और बड़ा पापी है, इसको ही तू इस विषय में बैरी जान।"
कर्म के प्रति आसक्ति रजोगुण की पहचान है, जो इच्छा के कारण - होती है। जैसा कि एक कार के मामले में होता है - गति रजो गुण से पैदा हुआ एक लक्षण है और इसे प्राप्त करने के लिए 'एक्सिलिरेटर' एक उपकरण है। इसी प्रकार धीमा होना या जड़ता तमस का स्वभाव है और इसके लिए 'ब्रेक' एक यंत्र है।
चालक सत्व गुण का प्रतिनिधित्व - करता है जो एक सुगम और सुरक्षित सवारी के लिए' एक्सिलिरेशन' और - 'ब्रेकिंग' का संतुलन है।
'स्पीडोमीटर' जागरूकता का एक उपकरण है। इन सब में यदि संतुलन बिगड़ गया तो दुर्घटना निश्चित है।
'काम' भी हमारे जीवन में संतुलन खोने के अलावा और कुछ नहीं है जहां हम खुशी प्राप्त करने के लिए इतनी ऊर्जा का निवेश करते हैं, किसी चीज या किसी को पाने, या शक्ति और प्रसिद्धि प्राप्त करने के लिए। इन इच्छाओं को ऊर्जा देते हुए हम इनके परिणामों से पूरी तरह अनजान हैं। जब यह हमारे ऊपर हावी हो जाता है तो हमारे पास कोई नियंत्रण नहीं रहता।
क्रोध अतृप्त इच्छा का स्वाभाविक परिणाम है जो खुशी के पीछे सदा स्थित होता है।
श्लोक कहता है कि इच्छाएं अतृप्त हैं, और जितना अधिक हम इसे संतुष्ट करने का प्रयास करते हैं, यह उतना ही बढ़ता है। अमीर अधिक धन और शक्ति चाहता है। तरीका यह है कि उन्हें न तो दबाना है और न ही संतुष्ट करना है। श्री कृष्ण कहते हैं कि उनसे सावधान रहें और उस समय जागरूक बनें जब आप 'काम' या 'भय' से जकड़े हुए हैं और यह जागरूकता ही हमें उनकी पकड़ से मुक्त कर देगी।