Gita Acharan |Hindi

श्री कृष्ण कहते हैं कि 'प्रकृति के गुणों से अत्यंत मोहित हुए मनुष्य गुणों में और कर्मों में आसक्त रहते हैं, उन पूर्णतः न समझने वाले मंदबुद्धि अज्ञानियों को पूर्णतः जानने वाला ज्ञानी विचलित न करे। (3.29) 'वास्तविक कर्त्ता होने के अलावा, गुणों में हमें सम्मोहित करने और हम पर जादू करने की क्षमता होती है, जो हमें हमारे वास्तविक स्वरूप को भुला देती है। हम तब तक मंत्रमुग्ध रहते हैं, जब तक हमें एहसास नहीं हो जाता कि हम जादू के अधीन हैं।

 

अज्ञानी और बुद्धिमान के बारे में बात करते हुए बताते हैं कि अज्ञानी गुण की मन्त्रमुग्धता या माया के अधीन रहकर यह महसूस करते हैं कि वे कर्त्ता (3.27) हैं और चीजों को प्राप्त करना, महत्वपूर्ण होना, ध्यान आकर्षित करना तथा अधिकारों के लिए लड़ना चाहते हैं।

 

साथ ही, वे परिवार, कार्यस्थल और समाज में दूसरों को कर्त्ता मानते हैं और उनसे अपेक्षा करते हैं कि वे उनकी अपेक्षाओं के अनुसार व्यवहार करें या प्रदर्शन करें। जब ऐसा नहीं होता, तो अपराध बोध, खेद, क्रोध और दुख जैसे परिणाम होते हैं।

 

जागरूकता का दूसरा चरण वह है, जो एक घटना घटने के कुछ समय व्यतीत होने पर उत्पन्न होता है। यह समय अंतराल कुछ क्षण, वर्ष, दशक या जीवनकाल

भी हो सकता है। घटनाएं वे शब्द हो सकते हैं, जो हम बोलते हैं, वे इच्छाएं, जिनसे हम जकड़े हुए हैं, हम जो निर्णय लेते हैं या हम जो कर्म करते हैं, वे हमारे ऊपर मौजूद गुणों के कारण हो सकते हैं।

 

जागरूकता का तीसरा चरण, वर्तमान क्षण में ही समझना कि गुण गुणों ( 3.27 ) के साथ परस्पर प्रभाव डाल रहे हैं और हम कर्त्ता नहीं हैं। यह आनंदपूर्वक अवलोकन करने की कला है।

अज्ञानी भी समय के साथ अपने स्व-धर्म के अनुसार जागरूकता की स्थिति में पहुंच जाएगा और इसलिए कृष्ण बुद्धिमानों को सलाह देते हैं। कि अज्ञानी को विचलित किए बिना प्रतीक्षा की जाए।

 

हम सभी जिस दुनिया में रहते हैं, उसकी कई धारणाएं रखते हैं और अज्ञानी इन धारणाओं के कैदी हैं। जीवन में एकत्रित इन धारणाओं को दूर करना ही बुद्धिमानी है।


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