Gita Acharan |Hindi

समत्व उन सभी ज्ञानीजन के उपदेशों का सार है जो कभी इस धरती पर आए थे। उनके शब्द, भाषा और तरीके अलग-अलग हो सकते हैं लेकिन संदेश समत्व प्राप्त करने का है। इसके विपरीत कोई भी उपदेश या अभ्यास सही नहीं है।

मन के सन्दर्भ में, यह एक ओर इंद्रियों और दूसरी ओर बुद्धि के बीच संतुलन है। यदि कोई इंद्रियों की ओर झुकता है, तो वह वासनाओं में पूरी तरह डूब जाता है। जब बुद्धि हावी हो जाती है, तो व्यक्ति जागरूकता प्राप्त करता है, लेकिन जब करुणा की कमी होती है, वह दूसरों को नीची नजर से देख सकता है। इसलिए श्रीकृष्ण कहते हैं कि सर्वश्रेष्ठ योगी वह है जो दु:ख या सुख में दूसरों के लिए वैसा ही अनुभव करता है जैसा वह अपने लिए करता है (6.32)। यह जागरूकता और करुणा का सामंजस्य है।

श्रीकृष्ण ने हमें सोने और चट्टान जैसी चीजों को एक समान मानने के लिए कहा; एक गाय, एक हाथी और एक कुत्ता को भी एक समान मानने के लिए कहा। बाद में उन्होंने हमें मित्रों और शत्रुओं सहित सभी लोगों के साथ समान व्यवहार करने के लिए कहा। इसे समझने का एक और तरीका यह है कि लोगों के साथ व्यवहार करने के तीन अलग-अलग स्तर हैं। पहला कानून के समक्ष समानता की तरह है जहां दो लोगों को अधिकार है कि उनके साथ बराबरी का व्यवहार किया जाए। दूसरा दो व्यक्तियों या गुणों की बराबरी करना है जिसमें एक हमारे दिल के करीब है जबकि दूसरा नहीं है। यह माता-पिता और सास-ससुर को एक समान मानने जैसा है। तीसरा स्तर खुद की दूसरों के साथ बराबरी करना है। 

उनका दु:ख हमारा है और हमारी खुशी उनकी है। यह समत्व से प्रवाहित होने वाली शुद्ध करुणा है। श्रीकृष्ण इसे ‘परम आनंद’ कहते हैं, जो तब प्राप्त होता है जब मन पूरी तरह से शांत होता है और जूनून वश में होते हैं (6.27)। 

इसे प्राप्त करने के लिए, श्रीकृष्ण दृढ़ संकल्प के साथ नियमित अभ्यास की सलाह देते हैं (6.23)।

 चंचल और बेचैन मन भटक भी जाए तो भी हमें उसे वश में लाना होगा (6.26)। वह इस नियमित अभ्यास से अनंत आनंद का आश्वासन देते हैं (6.28)।


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