Gita Acharan |Hindi

यततो ह्यपि कौन्तेय पुरुषस्य विपशचितः । इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मनः

श्री कृष्ण ने अर्जुन को सावधान किया कि अशांत इंद्रियां बुद्धिमान पुरुष के मन को भी जबरन भ्रष्ट कर सकती हैं। यह श्लोक उत्तेजना से भरी हुई इंद्रियों की स्वचालितता के बारे में है।

 

सबसे अच्छा उदाहरण एक धूम्रपान करने वाले का है, जो धूम्रपान के नुक्सान से अच्छी तरह अवगत है, लेकिन इसे छोड़ना बेहद मुश्किल है । असलियत यह है कि जब तक उसे पता चलता है, सिगरेट पहले ही जल चुकी होती है।

 

कोई भी, जो सड़क पर ड्राइव करते हुए क्रोध में (रोड रेज) या अपराध में शामिल है, यह प्रमाणित करता है कि यह क्षण भर की गर्मी में हुआ और जानबूझ कर नहीं। ऐसा ही किसी के साथ होता है जो कार्यस्थल पर या परिवार में कठोर शब्द बोलता है और उसके बारे में पछताता रहता है क्योंकि उसका ऐसा करने का इरादा नहीं था। इन उदाहरणों का अर्थ है कि इंद्रियां हमें अपने वश में ले लेती और कर्म बंधन में बांध देती हैं।

 

जीवन के प्रारंभिक वर्षों के दौरान हमारे मस्तिष्क में मुक्त न्यूरॉन्स पैदल चलने जैसी स्वचालित गतिविधियों में सहायता के लिए 'हार्डवायरिंग' नामक जोड़ बनाते हैं क्योंकि इससे मस्तिष्क की बहुत सारी ऊर्जा बचती है । यही बात कौशल और आदतों के मामले में भी होती है, जो हम अपने जीवन के उत्तरार्द्ध में हासिल करते हैं।

 

मेहनत और ऊर्जा खर्च करके बनाई हुई ' हार्डवायरिंग', जो अन्यथा आवश्यक है, इतनी शक्तिशाली हो जाती है कि इसके आधार पर आदतोंको दूर करना अत्यंत मुश्किल होता है। न्यूरोसाइंस का कहना है कि 'हार्डवायरिंग' को तोड़ना असंभव है तथा एक नई 'हार्डवायरिंग' बनाना आसान है।

 

भगवान श्री कृष्ण इसी प्रक्रिया का जिक्र करते हुए कहते हैं कि इंद्रियां इतनी शक्तिशाली हैं कि वे एक बुद्धिमान व्यक्ति के दिमाग को भी हर सकती हैं।

 

श्री कृष्ण कहते हैं कि किसी को भी सर्वशक्तिमान के सामने आत्मसमर्पण करना चाहिए जो कि इंद्रियों की स्वचालितता को दूर करने में सक्षम होते हैं। कुंजी लड़ना नहीं, बल्कि जागरूकता के साथ समर्पण करना है, जो आवश्यक शक्ति का स्रोत है।


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