अर्जुन मन की तुलना वायु से करता है और जानना चाहता है कि इसे कैसे नियंत्रित किया जाए, ताकि यह संतुलन बनाए रखे। श्रीकृष्ण कहते हैं कि यह निश्चित रूप से ऐसा करना कठिन है लेकिन इसे वैराग्य के अभ्यास से प्राप्त किया जा सकता है।
इंद्रियों द्वारा जुटाई गईं जानकारी सुरक्षित है या असुरक्षित यह तय करने के लिए दिमाग का विकास किया गया है। इस के लिए दिमाग स्मरणशक्ति का उपयोग करता है। इस क्षमता ने हमें क्रमिक विकास
के दौरान जीवित रहने और समृद्ध होने में मदद की।
दिमाग की उसी क्षमता का उपयोग आंतरिक निर्णय लेने के लिए भी किया जा सकता है, जिसे जागरूकता कहा जाता है। हम अपने दिमाग के फैसले लेने की क्षमता को सुधार ने के लिए स्वयं के विचारों और भवनों का उपयोग भी कर सकते है।
आज के आधुनिक योग में इसी तरह से ’फीडबैक’ का उपयोग कंप्यूटर के काम करने की क्षमता को सुधार ने की लिए भी किया जा रहा है।
भगवान श्रीकृष्ण इस आंतरिक शक्ति को
अभ्यास से विकसित करने का संकेत दे रहे हैं क्योंकि यह स्वाभाविक रूप से नहीं आती। यह दिमाग में नई ताकत भरने जैसा है।
’वैराग्य’ को समझ ने के लिए इसके एक दम विपरीत वाली वृति यानी ‘राग’ को समझना भी एक उपाय है।
मोटे तौर पर ’राग’ दुनिया में सौंदर्य, करियर और भौतिक संपत्ति जैसे आनंद की प्राप्ति के लिए एक दौड़ है। विरोधी वृत्तियों के सिद्धांत के अनुसार, हर राग का अंत वैराग्य में ही होता है लेकिन हमारा ध्यान हमेशा राग पर होता है और हम वैराग्य को अनदेखा कर देते हैं।
’स्टॉइसिसम’ (विपरीत) जैसे कुछ दर्शन मृत्यु के उपयोग की वकालत करते हैं, जो वैराग्य का शिखर है। इसे ‘मेमेंटो मोरी’ यानी लगातार मौत का अनुभव करना कहा जाता है।
इसके लिए कार्यस्थल या घर में एक प्रमुख स्थान पर मृत्यु की याद दिलाने वाले कुछ स्मृति चिन्ह रखे जाते हैं ताकि निरंतर इन पर पड़ती रहे। भारतीय दर्शन इसे श्मशान वैराग्य कहते है।
श्रीकृष्ण कहते हैं कि यदि तुम ’वैराग्य’ का अभ्यास करते हो तो यह मन को स्थिर कर देगा।
लॉकडाउन ने हमें वैराग्य के क्षणों की झलक दी। वैराग्य का एक छोटा सा भाग हमें शती और आनंद प्रदान करने वाला संतुलित मन प्राप्त करने में मदद कर सकता है।
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